
क्या नशा करना वाकई आधुनिकता को प्रमाणित करता है या आज की युवा पीढ़ी खुद को बुरे लत से बचा पाने में नाकाम होती जा रही है। ये महज एक सवाल ना रह कर , एक परिवार ,एक समाज और पूरे देश के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। नशा एक ऐसी अवस्था है जिससे मनुष्य का मस्तिष्क क्षुब्ध हो जाता है तथा स्मृति कम हो जाती है और साथ ही साथ यह इंसान के सोचने समझने की क्षमता को नस्ट कर पूरे बॉडी को अनियंत्रित कर देता है। अब ये समझना और भी ज्यादा दिलचस्प होगा कि आखिर लोग नशा करते क्यों हैं? अलग अलग लोगों के द्वारा अलग अलग दलील पेश की जाती रही है , जैसे : कुछ अपनी स्टेटस मेंटेन करने के नाम पर नशा करते हैं ,तो कुछ अपने गमों को भूलने के लिए और कुछ तो ऐसे भी हैं , जिनके लिए नशा मानो जीवन देने वाली कोई बूटी बन गई हो। नशा जैसे शराब, अफीम, गांजा, भांग या और भी इसके कई रूप हो सकते हैं। स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्रों में नशा के बढ़ते रुझान को आसानी से देखा जा सकता है। हर बार बच्चों के गलत राह को चुनने की जिम्मेवारी यूं ही मां बाप पर डालना मुझे नहीं लगता हर बार सही है , क्यूकिं कोई भी पेरेंट्स अपने बच्चों को आजादी कभी ये सोच कर नहीं देते ताकि उनके बच्चे खुद को नशा की राह में धकेल लें। मैं सिर्फ परिवार की बात क्यूं करूं ,इस काम में तो सरकार भी हमेशा से विफल होती आई है। अब सवाल ये भी है कि आखिर इतने नुकसान के बावजूद भी सरकार शराब की बिक्री पर रोक क्यों नहीं लगा पा रही है तो इसका बड़ा ही आसान सा उत्तर ये है कि राज्य सरकारें हमेशा से शराब पर टैक्स के ज़रिए अपने ख़ज़ाने को भरती रहीं हैं तो ऐसे में भला खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम सरकार आख़िर क्यों करे? शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व का सरकारी खजाने में बहुत बड़ा योगदान होता है और शायद यही वजह है कि जब लॉकडॉउन में ढील की बात आई तो शराब की बिक्री में राहत कि बात पहले नंबर पर थी। लॉकडाउन के दौरान ही दिल्ली सरकार ने शराब पर 70 फीसदी स्पेशल टैक्स लगा कर शराब की बिक्री की। वित वर्ष 2018 - 19 की बात करें तो उत्तर प्रदेश को देश में सबसे ज्यादा कमाई शराब की बिक्री के जरिए हुई थी , दूसरे नंबर पर कर्नाटक, तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र , चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल तथा पांचवे नंबर पर तेलंगाना था। शराबबंदी का कॉन्सेप्ट हमेशा से ही सरकारों के लिए एक मजबूत हथियार का काम करता रहा है वहीं दूसरी तरफ ये भी सच है कि ज्यादातर मंत्री ने अपने पद को इस शराब के बल पर ही अर्जित भी किया है। हालांकि बिहार और गुजरात जैसे राज्यों ने शराबबंदी को लागू तो किया है पर बात अलग है कि वहां के लोगों को शराब आज भी आसानी से उपलब्ध हो ही जा रहा है और इलेक्शंस के वक्त भला इसके बिना काम तो मंत्रियों का भी नहीं बनने वाला तो ऐसे में शराबबंदी कि उम्मीद सरकार से करना खुद की ही नासमझी कही जाएगी। राज्यों के लिए शराब से कमाई इसलिए भी अहम है क्यूंकि अन्य टैक्सों में केंद्र सरकार की भी हिस्सेदारी होती है लेकिन शराब पर लगने वाले स्टेट एक्साइज में राज्यों का अकेले का हक होता है। नशा खुद के स्वास्थ्य तथा मन - मस्तिष्क के लिए तो नुकसानदेह है ही साथ ही साथ ये दूसरों को भी नकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है। हिंसा ,बलात्कार ,चोरी , आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पी कर गाड़ी चलाने से ऐक्सिडेंट का होना एक आम बात बन चुकी है। अनेकों बीमारियां जैसे मुंह , गले व फेफड़े का कैंसर , ब्लड प्रेशर ,अल्सर, अवसाद आदि रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है। ज्यादातर नशीली पदार्थों के डब्बे के ऊपर सारी वार्निंग दी रहती है ,इसके बावजूद लोग उन वार्निंग को दरकिनार कर नशे से परहेज़ नहीं कर पाते ,ये कोई छोटी समस्या तो बिल्कुल भी नहीं है। इसके पहले की नशा आपको पूरी तरीके से बर्बाद कर दे , इसे छोड़ने का हर संभव प्रयास करें। अच्छे लोगों के संपर्क में रहें, डेली एक्सरसाइज करें, लिखने की आदत डालें , खुद के महत्व को समझें और सबसे बड़ी बात खुद को खुश रखने के अच्छे व स्थाई तरीकों को ढूंढे। नशे को ना कह कर खुद के साथ साथ आप एक समाज को भी स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं।
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- Namita Priya

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