
रूचिनां वैचित्रयादृजूकुतिलनानापथजुशाम । नरिनामेको गम्यस्तववमसी पयसामर्णव इव।।
अर्थात जैसे विभिन्न नदियां भिन्न भिन्न श्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं ठीक उसी प्रकार भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े - मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग हे प्रभु अंत में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं। कुछ ऐसे विचारों वाले इंसान थे स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थपरिवार में हुआ। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता भुवनेश्वरी देवी थीं। इनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन को अमेरिका और यूरोप के हर एक देश तक पहुंचाने वाले स्वामी विवेकानंद ही थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामी विवेकानंद का ये कथन - \" उठो , जागो और तब तक नहीं रुको ,जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए \" आज भी लोगों को अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहने की प्रेरणा देता है। विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी ,जिसमें धर्म और जाति के आधार पर मनुष्य- मनुष्य में कोई भेद न रहे। उन्होंने वेदांत के सिद्धांत को इसी रूप में रखा। अध्यात्म बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है की समता के सिद्धांत का जो आधार विवेकानंद ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। उन्होंने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि साम्प्रदायिकता , हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मांधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं , सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई सभी देशों को निराशा कि गर्त में डालती रही हैं। वो अपनी विदेशी यात्राओं के दौरान तीन साल तक अमेरिका में भी ठहरे जहां उनके ज्ञान को देखते हुए वहां के मीडिया ने उन्हें साइक्लोनिक हिन्दू का नाम दिया। \"अध्यात्म विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा \" - यह स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था। उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में विवेकानंद लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रांति के जरिए भी देश को आजाद कराना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ये आभास हो गया कि परिस्थितियां उन इरादों के लिए अभी परिपक्व नहीं है। इसके बाद ही विवेकानंद ने \"एकला चलो\" की नीति का पालन करते हुए भारत और दुनिया को खंगाल डाला। स्वामी विवेकानंद मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अंग्रेज़ी शिक्षा के विरोधी थे ,वो ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। इन्होंने 1 मई 1897 को अपने गुरु राम कृष्ण परमहंस के नाम पर राम कृष्ण मिशन की स्थापना की। न्यूयॉर्क में 1894 में पहली वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। उन्होंने मनुष्य की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया साथ ही साथ धार्मिक आडंबर पर चोट की तथा इश्वर की एकता पर बल दिया। उन्होंने महिलाओं तथा दलितों की दयनीय दशा की कड़ी निन्दा की साथ ही समाज कल्याण के लिए इनके उत्थान को जरूरी बताया। उन्होंने गरीबों के कल्याण को ही ईश्वर कि सेवा माना। समाज के उत्थान में उन्होंने \" आत्मोत्थान \" को मूल तत्व के रूप में ग्रहण किया। 1884 में विवेकानंद के जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। 12 से 16 जनवरी के बीच राष्ट्रीय युवा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। पहला राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव का आयोजन 12 जनवरी से 27 फरवरी 2019 में किया गया तथा दूसरा 23 दिसंबर 2020 से 16 जनवरी 2021तक किया गया है। विवेकानंद का राष्ट्रवाद ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीयवाद बल्कि मानवतावाद की भी प्रेरणा देता है। उनकी धर्म की अवधारणा हमेशा लोगों को आपस में जोड़ने पर बल देती है।
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