पलामू : इस जहाँ में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें ऊपरवाले से हमेशा ही शिकायत होती है. आप उनसे जब भी मिलेंगे वो अपनी बदकिस्मती का हवाला देकर किस्मत को कोसते रहते हैं. लेकिन आज की के खबर देखने के बाद आपको अहसास होगा कि वाकई में बदनसीबी होती क्या है. तकलीफ कहते किसे हैं. दुनिया मे कैसे कैसे लोग हैं उनका रहन सहन क्या है. इन तस्वीरों को देखिए ये कोई जंगली पहाड़ी क्षेत्र का नही बल्कि डालटनगंज शहर के नावाटोली का है, बेलवाटिका चौक से महज 100 मीटर की दूरी पर बसा ये बस्ती आज भी 50 साल पीछे है. ढिबरी युग मे जी रहे इस बस्ती के लोगों के जिंदगी में तो अंधेरा है ही, कमरे में भी ऐसा अंधेरा होता है कि दिन में भी ढिबरी जलानी पड़े. इनके जीवन मे आशा की किरण बनकर आयी कपड़ा बैंक संचालिका शर्मिला शुमी. जो बच्चों को पढ़ाकर नई पीढ़ी के जिंदगी में उजाले लाना चाहती हैं. पर आज उनकी भी आंखे भर आयी जब उन्होंने इस बस्ती में रह रहे बच्चों के तकलीफ को देखा.
एक ही कमरा जिसमे दिन में भी अंधेरा हो और उसमें परिवार के 8 सदस्य का गुजारा देखकर कभी कभी होमवर्क पूरा नही करने पर बच्चों को डांट देने का दुःख मैम के चेहरे पर साफ झलक रहा था. ढिबरी की रौशनी में पढ़ती नन्ही सी मासूम पूजा के दिल मे कसक है. वो पढ़लिखकर पुलिस की नौकरी करना चाहती है. अपनी माँ का दुःख दूर कर नया घर बनाना चाहती है, पर उसके अबोध मन को ये बात कौंधती है कि वो गरीब बाप की बेटी है. रुंधे गले से लाख कोशिश के बाद भी उसके दर्द अश्क बनकर छलक ही जाते हैं.
डबडबाई आंखों से पूजा ने अपने सपने को तो बता दिया और उस सपने को पूरा कर रहा है द गुरुकुलम इंटरनेशनल परिवार सतबीर सिंह के नेतृत्व और गुरबीर सिंह के निर्देशन में चल रहा चियांकी स्थित द गुरुकुलम इंटरनेशनल स्कूल ने अकेली पूजा के सपनों को ही पंख नही दिया बल्कि पायल और सुमन के जिंदगी को भी रौशन कर दिया. उसी बस्ती में रहने वाली पायल के घर भी हम पँहुचे जहां फिसलन भरे रास्ते से फुदकते हुए पायल हमें अपने घर ले गयी. घर के अंदर जब हम दाखिल हुए तो वही काल कोठरी जहां दिन में भी रौशनी की जरूरत हो, और जरूरत जब रौशनी की हो तो ढिबरी ही एकमात्र सहारा है जो उनके अंधरे काल कोठरी को रौशनी दे सके. पर जब हमने उससे बात की तो उसकी बातों में आत्मविश्वास झलका, वो बड़ी होकर टीचर बनना चाहती है और अपनी शर्मिला मैम के जैसी और विद्यालय निदेशक गुरबीर सिंह से प्रेरणा लेकर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना चाहती है.
उसी बस्ती की सुमन जो कभी सपने में भी बड़े स्कूल के पढ़ने का नही सोची थी वो अब गुरुकुलम की शिक्षा और संस्कार पाकर डॉक्टर बनना चाहती है. उसे भी मलाल है इस बात का की उनके परिवार के आधे सदस्य तो इलाज कराते ही नही हैं, इएलिये वो डॉक्टर बन मुफ्त इलाज करना चाहती है.
इन तीनों बच्चियों को द गुरुकुलम इंटरनेशनल स्कूल के द्वारा गोद ले लिया गया है. इनकी निःशुल्क शिक्षा ही नही बल्कि कपड़े, किताब ,कॉपी ट्रान्सपोर्ट पूरा खर्च विद्यालय परिवार वहन करेगी.
ये कोई नई बात नही है सतबीर सिंह उर्फ राजा बाबू का नाम पलामू में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरी के लिए पहले पायदान पर लिया जाता है. डीएवी जैसे स्कूल में प्रत्येक वर्ष सैकड़ों निःशुल्क बच्चों को शिक्षा देने का श्रेय ले चुके परिवार की ख्याति अब और बढ़ने लगी है. स्लम एरिया के बच्चों को गोद लेना और उन्हें काबिल बनाने की सराहना चहुँओर हो रही है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे को बुलंद कर रहा द गुरुकुलम इंटरनेशनल स्कूल में बेटीयों का निःशुल्क नामांकन भी लिया जा रहा है। जिससे और विद्यालय संचालकों को प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, यदि सभी विद्यालय इस तरह के कार्य करने लगें तो पलामू की तस्वीर बदल जायेगी.
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