
रिपोर्ट:– संध्या शेखर
वट सावित्री व्रत प्रत्येक साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को देशभर में मनाया जाता है।विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में ये व्रत बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा की जाती है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं, तथा कच्चे धागे से परिक्रमा करती हैं।जहाँ सावित्री ने अपने तप और पतिव्रता धर्म से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। इस व्रत से पति की दीर्घायु और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस बार यह 26 मई दिन सोमवार को होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
हिन्दू धर्म में सोमवती अमावस्या( सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या) का अपना अलग ही महत्व है सोमवती अमावस्या में पीपल के वृक्ष की पुजा तत्पश्चात परिक्रमा से घर में सुख शांति समृद्धि का वास होता है और परिवार के सभी सदस्य दीर्घायु होते हैं।इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। माना जाता है कि पुजा करने तक मौन धारण करने से इस व्रत का प्रभाव अत्यधिक फलदायी होता है।
वट वृक्ष का महत्व - बरगद के पेड़ को धर्म और ज्योतिष में बहुत महत्व दिया जाता है, यह माना जाता है कि इसमें त्रिदेवों (ब्रह्मा विष्णु महेश) का वास होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बरगद का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन विसर्जित करता है और अपनी घनी बनावट के कारण यह छांव भी देता है। अतः यह पेड़ विश्राम के लिए भी उपयुक्त होता है।
व्रत में सावधानी - बहुत सी स्त्रियों को देखा जाता है कि पूजा के दिन बरगद का पत्ता तोड़कर अपने बालों में लगती हैं जो बिल्कुल गलत है। आप जिसकी पूजा कर रहे हैं उसे ही छिन्न-भिन्न करना कहीं से भी उचित नहीं है।
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