
बंशीधर नगर:- रोशनी का त्योहार दीपावली 14 नवंबर को है। इसके लिए तैयारी शुरू हो गयी है। कुम्हार लोगों के घरों को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीये को अंतिम रूप देने में लगे हैं। कुम्हार दिन रात एक कार दीये बनाने में जुट गए हैं।लेकिन कोरोना संक्रमण का असर हर क्षेत्र के कारोबार पर दिख रहा है। इससे अनुमंडल मुख्यालय के कुम्हार भी अछूते नहीं है। मिट्टी के दीये व चाय के चुक्के बनाने वाले कुम्हारों के व्यवसाय को भी कोरोना ने प्रभावित किया है। लेकिन दीपावली पर्व आने से व्यवसाय पटरी पर लौटने की उम्मीद है। सालभर मिट्टी के चुक्के बनाने वाले कुम्हारों की मानें तो सिर्फ दशहरा, छठ व दीपावली में ही ऑर्डर आने पर दीये बनाते हैं। इस बार दशहरा में दीयों के ऑर्डर नहीं मिले। कुछ कुम्हारों को ऑर्डर मिले थे तो कुछ के हाथ अबतक खाली हैं। चेचरिया स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग 75 के किनारे बड़े पैमाने पर कुम्हार दीये बनाने का काम करते हैं। मंदिरी में तो इस बार दिवाली के लिए कुम्हारों को ऑर्डर ही नहीं मिले हैं। वहीं,नरही गांव के एक-दो कुम्हारों को छोड़ सभी को पिछले साल की अपेक्षा कम दीयों के ऑर्डर मिले हैं। कुम्हारों की मानें तो प्रति ट्रैक्टर पांच सौ रुपये मिट्टी की कीमत में बढ़ोतरी हो गई है, पर दीये की कीमत अभी वही है। नगर उंटारी, जंगीपुर, सुल्सुलिया, पल्हे, चौबेडिह, चित्विष्राम, हलीवांता सहित अन्य जगहों से दीये के ऑर्डर कुम्हारों को मिलते हैं। कुम्हार 300 से 400 रुपये पर हजार दीये दुकानदारों को देते हैं। वहीं चेचरिया गांव के कुम्हार विजय प्रजापति तीन पीढि़यों से दीया बनाते आ रहे हैं, पर ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी। कोरोना ने व्यवसाय को प्रभावित कर दिया है। इस बार दीयों का ऑर्डर नहीं मिला है। पहले एक हजार से पांच सौ दीये रोज लोग ले जाते थे। अब सौ से दो सौ दीये भी मुश्किल से बिक रहे हैं। इस बार दीपावली और छठ से भी कम उम्मीद है। :- कुम्हार विजय प्रजापति ने बताया कि अभी तक दीपावली के लिए ऑर्डर नहीं मिले हैं। दिवाली के लिए विश्वकर्मा पूजा के समय से ऑर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं। पिछले वर्ष 25 हजार दीये के ऑर्डर मिले थे। अभी से ही दीया बिकना प्रारंभ हो जाता था पर अभी तक कोई मांग नहीं हुआ है इस बार हम लोगों को कोरोना महामारी के कारण 10000 दिया का विक्रय होना भी मुश्किल लग रहा है।हमारे घर में तीन पीढ़ियों से इस धंधे को किया जा रहा है। लेकिन, अब पहले जैसी खरीददारी नहीं होती। अब मिट्टी वाले बर्तन सीजनेबल धंधा बनकर रह गए हैं। दीपावली के अवसर पर पांच-दस हजार की कमाई हो जाती है, बाकी दिनों में परिवार किसी तरह से मजदूरी का सहारा लेना पड़ता है। :- घट रहा लोगों का रुझान मिट्टी से बने आइटम से लोगों का का रुझान कम हो गया है, जिस हिसाब से इसमें मेहनत और पैसा लगता है उसके अपेक्षा बहुत कम लाभ मिल पाता है। यही कारण है कि कुम्हार दीपावली व गर्मियों में ही इस धंधे को करते हैं, बाकी दिनों में अन्य काम करके पेट पालते हैं।
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- Amaresh Kumar Vishwakarma

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