08 Dec, 2019
3 दिसंबर की तारीख क्यों बन गई पलामू के लिए स्वर्णिम
admin Admin

प्रणय स्नेह अनुरक्ति प्रेम और अनुराग, पलामू की बगिया का खिला हम सबका अनुराग. अनुराग है कण कण में, अनुराग है जन्म मरण में, अनुराग है नभ और थल में, है अनुराग अग्नि और जल में।

अनुराग अलंकार जीवन का, है अनुराग झंकार जीवन में, अनुराग में उन्माद भरा है, है अनुराग प्रसाद जीवन में.

अनुराग विवाद कभी रहा नहीं, है बना अनुराग आज संवाद जीवन में, अनुराग श्रृंगार सिंगरा का, है आस्था अनुराग से विस्तार जीवन में.

कभी अनुराग ज्वार है लाता, तो कभी करता उद्धार जीवन में, लकी कहता प्यारे जो अनुराग अपनाले, तो झंकृत हो झंकार जीवन में.

मेदिनीनगर : किसी परिवार के लिए गौरवपूर्ण कहें मगर पलामू जिला मुख्यालय के लिए ऐतिहासिक, गौरवशाली, अद्वितीय शोभा उससे कहीं ज्यादा बड़ी है कि जिस रास्ते आप पहुंचेंगे तो शहादत के आगे श्रद्धासुमन अर्पित कर मेदिनीनगर में कदम रखेंगे या प्राचीन, पवित्र, पौराणिक, परंपरागत पलामू में अब आप कहेंगे कि यहाँ एक ऐसा शहीद स्मारक है जहाँ पहुंच आपके दिल में अनुराग भर जाएगा. ऐहसास हो जाएगा आप के पैर संघर्ष की धरती पर खड़े हैं, जहाँ महसूस करेंगे कि ये माँ भारती की धरा है, ये पावन पलामू है.

जी, नाम सुनकर ही समझ गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं मां भारती के लाल, पलामू पुत्र, सिंगरा के शहीद लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला की. जब शहादत के दिवस को पुण्यतिथि को शहीदों को नमन करने, श्रद्धांजलि देने की परंपरा निभाई जाती है, परंतु अपने परिवार के चिराग को बुझने के बाद भी उसकी लौ को अनुराग के परिवार ने जलाए रखने का जो संकल्प लिया है, जैसा अनुराग थे, उनके परिवार ने वैसे ही फौजी जीवन देने में मशगूल है. जिसका रंग रूप आकार अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय है.

3 दिसंबर की तारीख भी आज पलामू जिला मुख्यालय में इतरा रहा है, सिंगरा में तो वो इठला रहा है, एन एच पर बनने वाले शहीद अनुराग स्मारक स्थल पर तो उमंग, उल्लास, उत्साह से भरा उफान पर दिखा, जब सबने एक शब्द में हैप्पी बर्थडे अनुराग कहा.

भले ही आंखें नम थी, मगर सबके दिल में शहादत के प्रति एक ऐसा अनुराग भरा था, जिसे समझना है तो नाम का अर्थ समझना होगा. नामवर अनुराग का मतलब ही है, स्वैच्छिक, यानि अपनी इच्छा के अनुरूप हंसमुख, जो थे सिंगरा का अनुराग, खुद से, खुद में, परिवार, समाज, दोस्त, रिश्तेदार हर किसी के साथ अस्थिर, जो कभी एक जगह नहीं हो सकता, हर दिल में कहीं दानवीर बनकर, कहीं खिलाड़ी बनकर, कहीं सुपुत्र, तो कहीं बंधू-बांधव बनकर, तो कहीं देशभक्त, बनकर कहीं शाकाहारी, अध्यात्मिक, सद्भावना का संगम सक्रिय, जिनकी सक्रियता का कायल तो जब पूरा फौज था,.

तो आगे हम क्या कहें, डूबते तीन दोस्तों को तैराक अनुराग ने बचा लिया. जो कितना विकट रहा होगा कि उसकी सांसें टूट गई जो स्वींमींग पूल में सबकी सांसें बनता था. गंभीरता, जो उनका चरित्र था, रचनात्मक,  क्रिएटिविटी के कायल तो उनके साथी-सहयोगी थे ही,सक्षम उनकी सक्षमता तो लेफ्टिनेंट का पदनाम बताने के लिए काफी है, मैत्रीपूर्ण स्वाभाव तो उनके जाति से इतर बड़ो का आदर उन्हें सबसे अलग बनाती थी.तभी बड़े भी इनके दोस्त थे. भाग्यशाली तो इतना बड़ा कोई हो ही नहीं सकता कि अपनी जवानी को मां भारती के सेवा में समर्पित कर अपनी जिंदगी के बदले गैरों को जिंदगी दे नयी दुनिया को नये रूप में निर्माण करने निर्वाण कर निकले. ध्यान तो सेवा, सद्भावना, स्वावलंबन पर तो टिका ही रहा. आधुनिकता तो उनके रहन-सहन, चाल-चलन से झलकता ही था और उदार तो अनुराग थे ही जिनकी एक दो नहीं बल्कि दर्जनों कहानियाँ पिता, माता, बहन, भाई, दोस्तों हर किसी के जुबां से आपको सुनने को मिल जाऐगी.

सबका मिश्रण कर परिवार ने अनुराग के मिजाज के अनुरूप केक काट कर मनाया. शायद किसी और दुनिया से झांक कर अनुराग ने देखा होगा जन्मदिवस समारोह को तो याद आया होगा कि वो कैसे अपने घर में परिवार के बड़े-बुजुर्गों-छोटों को बारह बजे रात्रि में उठाकर चुपके से केक काटकर चौंकाते भी थे, और अनुराग से भर भी थे.

यही भर नहीं मां भारती की सेवा में न्योछावर अनुराग बस एक परिवार का बेटा नहीं था, धर्म-जात-समुदाय-पंथ से उपर एक मानवता, इंसानियत, नागरिकता का ऐसा मिसाल था, जिसकी गाथा अब गाई जा रही है, तो सुनकर आश्चर्य होता है कि क्या आज के भौतिकवादी, आर्थिक, एवं सहिष्णु वादी युग में कोई ऐसा भी हो सकता है, पर जो अनुराग थे, वो अनुराग अब सुर पकड़ा है, जिसका दिवाना उसका जमाना हमेशा रहेगा.

जो अपने मां उषा शुक्ला का लाडला ही नहीं प्यारे दोस्त थे, तो पिता जितेंद्र शुक्ला के गौरवान्वित भाव हैं, जिनका कंधा कभी भी बोझिल नहीं किया, हां आज कंधा उनके नाम को एक मुकाम देने की जिम्मेदारी उठाने के लिए लालायित है, क्योंकि सीना गर्व से चौड़ा है, शहीद लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला का वो पिता जो हैं. दुख तो होगा ना, घर का इकलौता चिराग थे. मगर ढांढस है कि अनुराग पलामू समेत देश के सपूत जो बन गए.

बहन रौशनी की आंखों की चमक अपने भैया के तस्वीर पर तेज सूरज के समान यूं ही दिखलाई नहीं पड़ता. जिस जिंदगी की लौ बुझ कर भी आज जगमगा रही है, उस लौ की रौशनी में कितने घर, कितने आंगन प्रकाशित हैं. रौशनी कहती है मेरे भैया थे नहीं वो हमारे साथ मौजूद हैं, जो जन्मदिन पर पहुंचे हर शख्स ने महसूस किया. अनुराग हर दिल में, हर सेवा भाव, सद्भावना में अपनों के बीच अपनों के साथ है.

हमने भी महसूस किया है, अनुराग तो सिंगरा के कण-कण में है, मौजूद हर किसी के दिल में एक लौ की भांति नयी उम्मीद की किरण बन उजाला फैला रहे हैं, जिसकी आधारशिला रखी जा चुकी है क्योंकि अनुराग वो प्रकाश है जो स्वैच्छिक भी है, हंसमुख भी, अस्थिर है, सक्रिय भी, गंभीर भी है, सक्षम भी, दोस्त भी है, किस्मतवाला भी, आधुनिक है उदार भी. सबका है, सबसे परिपूर्ण भी. जिनके बाद था लगेगा नहीं, जो है और रहेगा हमेशा अमर.

जब शहीद परिवारों को सम्मान देने एवं दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पूर्व सैनिक ब्रजेश शुक्ला ने हमें कार्यक्रम की सूचना दी तो हमने भी सोचा एक सकारात्मक खबर बनाऊंगा, जैसे बनाता हूं. मगर शहीद का जन्मदिवस समारोह से लौटने के बाद लगा कि अनुराग का शाब्दिक अर्थ की व्याख्या की जा सकती है, जो हमने की भी. मगर शहादत के उस नाम अनुराग की व्याख्या नहीं की जा सकती है, जितना मैं पिछले कुछ घंटों में सुना जाना, उसके लिए पूरे दिन आपसे चर्चा करूं तो भी कम होगी. मगर यहाँ अब जरूर कहूँगा कि अब अनुराग थे नहीं वो हैं, चलिए इसकी ही चर्चा करते हैं, क्योंकि उनकी शहादत के बाद 24 वां बर्थडे भले ही उनके व्यवहार के अनुरूप मनाया गया. परंतु सही मायने में देखें तो ये उनका पहला जन्मदिन रहा, जिसमें हर कोई शामिल होकर उन्हें अमरत्व का आशिष दे रहा था. दे रहा था उनकी ख्याति फैलने का आशिर्वाद, और जहां आधारशिला रखी गई उनके लंबी नहीं बल्कि बड़ी, विस्तारित, एवं जिदांदिल जीवन की गौरवगाथा गाने वाली शहीद स्मारक की.

नवसृजित मेदिनीनगर नगरनिगम में शामिल हुआ वार्ड नंबर एक का सिंगरा बस्ती. जहां 3 दिसंबर को हर साल पूरा पलामू मां भारती के लाल का जन्मदिवस का जश्न मनाएगा. यादों से निकाल उसे जमीं पर उतार लाएगा, क्योंकि सरकारी व्यवस्था से इतर शहीद का परिवार अपने दिवंगत पुत्र को जिंदा रखा है, उसे यादों में, दिलों में, जुबां पर, कथा-कहानियों में संजोये रखा है. जिसकी आधारशिला रख दी गई. शिलान्यास तो पहले ही हो चुका है, मगर अब खुदाई भी शुरू हो गई. परिजनों, मित्रों, रिश्तेदारों समेत पूरा सिंगरा गांव अपने सपूत पर नाज कर रहा है, उसे एक स्थान दे रहा है. जहाँ आदमकद प्रतिमा होगी. अमर जवान शहीद स्मारक होगा. होगा एक अदद पार्क वो भी वार मेमोरियल, जिसमें समाहित होगा, वीरता, पराक्रम, और तीरंगे के प्रति समर्पण की अनूठी कला. जहाँ हर वर्ष होगा वीर रस का संगत, जहाँ आकर सब भूल जाऐंगे कि हमें कोई पर्यटक स्थल जाना है, क्योंकि यहां कि भव्यता, मनोरमता, सौंदर्यता अनुराग नाम और उनकी जीवनशैली में समाहित होगा. जैसा सिंगरा वो बनाना चाहते हैं, वैसा ही अनुराग का सिंगरा बन कर रहेगा, जहां दोस्ताना व्यवहार, जाति-पाति का ना रहेगा भेदभाव. जहां शिक्षा, स्वाभिमान, स्वालंबन का युवाओं में प्रेरणा भरी जाऐगी, जहां कला, खेल, संस्कृति का समागम होगा. और होगा अनुराग के अनुरूप सिंगरा का अनुनाद.

लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला का परिवार हो या उनसे जुड़े तमाम लोग, सबने अनुराग को एक अलग तमगा दिया, जो जानते हैं अनुराग सबसा नहीं, अनुराग सबसे अलग थे. जिनकी कार्यशैली मानव की रही, कार्यतालिका नागरिक वाली रही, और कार्यकुशलता इंसानियत की पराकाष्ठा से कम नहीं. तो फिर क्यों ना कहा जाए अनुराग संपूर्ण हैं.

दिग्गज ददई ने तो अनुराग की बात करना सूरज को दीया दिखाने की संज्ञा ही दे दी. तो वहीं आयुक्त मनोज झा ने अनुराग को अपना बता जता दिया कि वो विरले धरा पर आए थे, और अद्भूत नश्वर जहाँ को छोड़ गए. जबकि शहीद का दर्जा तो देवता समान होता है. जहां पुष्प की अभिलाषा भी होती है समर्पित होने की.

हां संघर्ष की धरती पलामू पर शहादत को मिलता सम्मान भी प्रेरणादायी, स्मरणीय एवं अनुकरणीय है, जो नक्सलीयों को जमींदोज करने का संकल्प अपने सर पर कफ़न बांध निकले अभियान एसपी अरूण सिंह मानते हैं.

माटी के लाल ने मां भारती के लाल को सलाम, प्रणाम, नमन यूं ही नहीं किया, कह दिया हम गर्व करते हैं. जिनकी गाथा अमर हो उसके लिए सदैव तत्पर रहेंगे.

अनुराग की गाथा युवा गाऐंगे उन्हें अपना पथप्रदर्शक बनाऐंगे, उनके जैसा बनने का हर दिन संकल्प दुहराऐंगे.

इस माहौल का मतलब ही अनुराग, जिसमें प्रेम, भक्ति, सेवा, सद्भावना का समावेश हो, जो था जन्मोत्सव पर अनुराग ने अपनों के लिए जिया, अब उनका परिवार उनके लिए जीने को तैयार है.

स्मारक तो ऐतिहासिक होगा, क्योंकि ये स्मारक अनुराग का पहला नहीं है, उसके नाम की एक मंदिर भी बन चुकी है, पलामू तो शहादत को सम्मान देने में पीछे है. लेफ्टिनेंट अनुराग के पिता कहते हैं कि हम तो शहादत को सम्मान, एक आयाम, एक मुकाम देने में पीछे हैं आगे तो उससे प्यार करने वाले लोग हैं जो अनुराग को मंदिर में स्थापित कर चुके हैं. तभी तो पिता जितेंद्र शुक्ला को वो हर बात याद रही है, वो क्यों कहता था, कि आपको कुछ सोचना ना पड़ेगा. हर वो चीज होगी आपके कदमों में होगी, उन्हें क्या पता था कि वो बीसवीं सदी की कौन सी गाथा लिखने चल पड़ा था. जिसके हम, हमारा, समाज क्या पूरा देश सलाम भी करेगा, सजदा भी करेगा और सर भी झुकाऐगा.

24 साल की महज अल्प आयु में अनुराग लेफ्टिनेंट बनकर सैनिक का सर्वोच्च बलिदान पा लिया. ये विरले होते हैं, जिन्हें पसंद तो मीठा भोजन था, पर उससे कहीं ज्यादा मिठास उनके व्यवहार, बोली, कर्म, वचन में था. तभी तो उनके जन्मदिन पर दुख की घड़ी में भी अमर अनुराग के नाम की केक कटी, सबको उनका पसंदीदा खीर खिलाया गया. जिसने भी चखा, उसी ने अनुराग के मिठास को महसुस किया. सेवा भावना तो उनके रोम रोम में बसा था, जिसे उनके परिवार ने दिव्यांगों के साथ, भोजन करा, खाद्य सामग्री उपलब्ध करा, उन्हें हमेशा के लिए अपने परिवार का हिस्सा बना लिया. जन्मोत्सव पर लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला की याद में शहीद स्मारक सह वार मेमोरियल निर्माण का शुभारंभ कर दिया गया, क्योंकि 19 अप्रैल यानि उनकी पहली पुण्यतिथि तक स्मारक का निर्माण पूरा जो करा लेना है. मगर आप जान कर हैरान होंगे, कि अनुराग अपने व्यवहारकुशलता, सदाचारी आचरण, एवं सर्वधर्म समभाव की जीवनशैली उसे इस कदर प्रभावशाली बनाया, जो जाने के बाद भी उसे लोग महसूस करते हैं. गंगानगर में गुरूद्वारे के बगल में उनके नाम की मंदिर बनवाई गई है. जिसका उद्घाटन उनके मां उषा शुक्ला के हाथों कराई गई है. जहाँ जाकर परिजनों को मालूम चला कि उनका सुपुत्र सिर्फ उनका ही नहीं था, चाहे सिंगरा हो या रांची, या फिर फौज हो या गंगानगर, अनुराग हर घर का बेटा, हर इंसान का सगा, हर जान पहचान वालों का संबंधी था, महज कुछ माह में ही अनुराग के नाम का मंदिर बन चुका है, अब साल भर में स्मारक बन खड़ा हो जाएगा.

मगर आश्चर्य है कि जिन ममतामयी आंखे पथरा गयी अपने लाल के लिए, उन आंखों में अनुराग नाम का तेज भी आने लगा है, उन्हें खोने का गम है तो अपने कोख पर गर्व है.

वो अद्म्य साहस रहे, तो अद्भूत मानव भी, जो हर किसी के दिल में अनुराग बह रहा है.

हर किसी ने उस मां को ढांढस बंधाया, मगर वो पिता जो अपने पुत्र के लिए जीवन का हर हिस्सा न्योछावर करने के लिए तैयार है, उनके हिम्मत को करता हर कोई सलाम है, शायद इनके हौसले ही मां भारती को सच्चे सपूत देते हैं, और हमें अमन भरा चमन.

आज जब सिंगरा समेत समूचा पलामू अमर शहीद के परिवार के साथ खड़ा है तो हर कोई उनके बाद उनके परिवार का हिस्सा बन खड़ा है, कह रहा है अनुराग जिंदा है. बहरहाल इतना तो है कि अनुराग होने का मतलब शायद समझ में आ जाए तो क्या कहना. परिवार हो, समाज हो या फिर देश सबका नवनिर्माण हो जाए. सैल्यूट है ऐसे मां भारती के लाल को.

जी एक शहीद ऐसा जो अपने महज 24 साल की अल्प आयु में वो सब कुछ कमा गया जिस यश को पाने में एक जन्म भी छोटा पड़ जाए. आपसे बातें करता रहूंगा तो शायद अनुराग के बारे में दिन छोटा पड़ जाए. मगर इतना ही कहूंगा कि धन्य है मां उषा, पिता जितेंद्र, बहन सुप्रिया, रौशनी, ग्राम सिंगरा, जिन्होंने पलामू समेत समूचे भारत को एक प्रेरणादायी, प्रेरक, पथप्रदर्शक लाल लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला को दिया, बस इतना ही कहता हूं.

देखो ये विश्वास ना टूटे, अधरों का एहसास ना छूटे, लफ्जों की बारात अमर हो, देखना कहीं अल्फाज ना रूठे, कलमों की कलम निकले, शब्दों का आगाज ना टूटे, वास्तविकता जिंदा बस रखना, सपनों से तालुक्कात ना छुटे, फूले शहर, फलें खुब शहरी, गांव की गौरेया का संसार ना छुटे, सुंदरता के मायने समझो, आलोक में वसन का भार ना छुटे, संस्कृति तहजीब ना छुटे, आदर और सत्कार ना छुटे, असभ्य नहीं संस्कारी बनो तुम, अनुराग का कभी, यह राग ना छुटे.

अनुराग का कभी यह राग ना छुटे.

A P Lucky का अमर शहीद लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला और उनके परिजन को कैपिटल न्यूज की ओर से अभिनंदन, वंदन, नमन.



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