
अभी के मौजूदा हालात हर इंसान से मानो अपनी ख़ामोशी लिए बहुत कुछ पूछ रहा हो। क्या हम उसी भारत में रह रहे हैं जिसकी संकल्पना गांधी ने कि थी? क्या गांधी ने जिस राम को माना वो वर्तमान राम से अलग थे ? गांधी ने किस बराबरी की बात की ? उन्होंने जिस छुआ छूत और समानता की बात की ,क्या हम अपने समाज में दूर तक ऐसी स्थिति को देख पा रहे हैं? गांधी अंग्रेजों से सिर्फ अहिंसा के बल पर लड़े और जीत भी हासिल की, आज तो अपने ही खून के प्यासे बैठे हैं। मुझे अब ऐसा लगने लगा है कि शायद अंग्रेज हमसे ज्यादा समझदार थे और कहीं ना कहीं उन्हें हमारी फिक्र भी थी, वरना अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले लोगों के साथ आज के वक़्त में जो शुलुक हो रहा है ,वो हमसे बिल्कुल नहीं छुपा है। यूपी के हाथरस जिले की एक दलित लड़की के साथ स्वर्ण जाती के लोगों के द्वारा सामूहिक बलात्कार किया जाता है और यूपी पुलिस कि तत्परता तो देखिए बिना परिवार वालों की मौजूदगी में रातों रात उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। आपको लगता है कि गांधी उस वक़्त में ना हो कर अगर आज के वर्तमान समय में होते तो यूपी पुलिस के सामने गांधी कि अहिंसा टिक पाती। आखिर ऐसी कौन सी आफ़त आ गई ,जिसकी वजह से सिस्टम रातों रात इतना सक्रीय हो उठा। क्या ये वाकई एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम सक्रीय हो उठा या फिर पॉलिटिकल सिस्टम ने खुद को बचाने का नया रास्ता ढूंढ़ लिया। गांधी की विचारधाराओं पर लोगों को जब चलना ही नहीं है, फिर इतना ढोंग क्यूं? गांधी का पुतला बना कर उनपर गोलियां चलाई जाती हैं। नाथू राम गोडसे को सही ठहराया जाता है और हमारे महान नेता चुप रहते हैं। एक वक़्त पर जब \"जय श्री राम\" के नारे से लोगों के घरों की खिड़कियां फूल बरसाने के लिए खुल जाया करती थी, आज उसी \"जय श्री राम\" का उच्चारण कर खून कि नदियां बहा दी जा रही है , खुली खिड़कियों को बंद करने पर मजबूर हैं लोग। गांधी के राम राज का मतलब ये तो बिल्कुल नहीं था। जब सिस्टम में रह रहे लोगों के लिए स्वाभिमान शब्द का अस्तित्व ख़त्म हो जाए ,तो आम जनता उस मछली की तरह ही तड़प कर रह जाती है ,जिसे पानी से निकाल कर बाहर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। पहले लड़की की जिंदगी ख़त्म करना फिर उस परिवार वालों के साथ इतना दुर्व्यवहार करना , आधी रात को पुलिस पेट्रोलिंग में निकले या ना निकले पर आधी रात को सबूत मिटाने की कोशिश करना ,ये सारी कड़ियां किस ओर इंगित कर रही हैं। पुलिस आखिर किसके कहने पर आधी रात को एक दुष्कर्म मामले कि पीड़िता के शव को जलाने हाथरस पहुंच जाती है। इन सारे सवालों के जवाब शायद हमें कभी ना मिल पाए। हां पर जो हमेशा मिलता है वो इस बार भी मिलेगा जैसे बहुत बड़ी बड़ी बातें , न्याय दिलवाने का आश्वासन , फिर से नए नए कमिटी का गठन ,हो सकता है नया भी कुछ हो। गांधी की अहिंसा अब धुंधली हो चली है , फिर से भय वाले सन्नाटे की गिरफ्त में अहिंसा के पुजारी आने लगे हैं। जिस गांधी कि अहिंसा वाली छड़ी में अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने की ताकत थी, शायद आज वो ताकत पूरी आवाम को मिलने पर भी नहीं राह गई है। बेखौफ बोलने की आजादी , हिंसा के खिलाफ अहिंसा से लड़ने की आजादी , न्याय पाने की आजादी , न्याय की गुहार लगाने की आजादी ,ये सारे भी मानो पसरे सन्नाटे में खुद को छुपाने की जद्दोजहद में लगे हैं। गांधीजी का एक प्रसिद्ध स्लोगन \"किसी की मेहरबानी मांगना ,अपनी आजादी बेचना है\"। ये पंक्तियां इतिहास के पन्नों में पूर्णतः अंकित हैं, पढ़ने की बेशक आजादी है। गांधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।।
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