25 Sep, 2020
सुप्रीम कोर्ट ने आखिर मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन की बात क्यों की
admin Namita Priya

अभी हाल ही में सुर्ख़ियों में रहा सुदर्शन टीवी शो \"यूपीएससी जिहाद\" ने काफी विवाद खड़े किए। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस शो के प्रसारण पर रोक लगा दिया है। सुदर्शन न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चाव्हांके ने हैशटैग यूपीएससी जिहाद में मुस्लिमों के घुसपैठ का बड़ा खुलासा करने का दावा किया था। ट्विटर पर चाव्हानके ने अपने शो के ट्रेलर को शेयर करते हुए ये दावा किया था कि यूपीएससी में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती संख्या एक साजिश है। यूपीएससी (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) जो हमारे देश के शीर्ष स्तर के ब्यूरोक्रेसी के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करता है। सुरेश चवाहांके अपने शो \"बिंदास बोल\" के विवादित ट्रेलर में \' जामिया के जिहादी\' शब्द का प्रयोग करते नजर आए। हमारे देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक जामिया विश्वविद्यालय में पढ़ने वालों को यूं जिहादी कह देना मुझे नहीं लगता किसी भी तरीके से उचित है। आपको शायद याद भी हो दिल्ली पुलिस की बर्बरता जो जामिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने सहा और फिर सिर्फ जामिया ही कैसे जेएनयू पर भी प्रहार किया गया और केंद्र मूकदर्शक बन तमाशा देखता रहा। जो लोग वास्तव में विकास के कॉन्सेप्ट को समझते हैं , जो सरकार की खोखली नीति से भली भांति वाक़िफ है, जिसे किसी से सवाल करने से डर नहीं लगता , सरकार ऐसे लोगों की स्वतंत्रता कि अभिव्यक्ति को कुचलने का हर संभव प्रयास करती है पर वहीं दूसरी तरफ समाज में नफरत फैलाने वालों के स्वतंत्रता कि अभिव्यक्ति का पूरा ख्याल करती है। इस शो ने यूपीएससी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान पर सवाल खड़े किए हैं और केंद्र सरकार ने इस शो पर अपनी आपती ना जताने का बहुत बड़ा कारण बताया। इसके कारण को जान आप में से बहुतों के चेहरे पर अनायास ही व्यंगात्मक मुस्कान आ जाएगी और वो बड़ा कारण है स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति। जिस स्वतंत्रता कि अभिव्यक्ति की इन छह सालों में धज्जियां उड़ी है, आज अचानक ही केंद्र किसी विशेष समुदाय को टारगेट करने तथा लोगों में नफरत फैलाने के लिए इसका सहारा लेने लगा। वैसे तो मैं ये बता दूं कि हमारे संविधान में \"प्रेस\" शब्द का कहीं भी जिक्र नहीं है , प्रेस को भी उतनी ही आजादी दी गई है, जितनी हमारे देश में एक आम नागरिक को आर्टिकल19(1)(a) के अन्तर्गत दी गई है ,जो की एक मौलिक अधिकार है। कुछ प्रतिबंधों को भी इसमें समाहित किया गया है ताकि लोगों के द्वारा किसी भी तरीके का कोई दुरुपयोग ना किया जा सके। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि हम किसी दूसरे के भावनाओं को बिना तथ्यों के ठेस पहुंचाए पर कुछ ऐसा ही काम किया जा रहा था सुदर्शन न्यूज़ चैनल के एक शो \"यूपीएससी जिहाद\" के द्वारा। वैसे ये एक मात्र चैनल भी नहीं है जो पूरे समाज में ज़हर फैलाने का काम कर रहा हो ,ज्यादातर न्यूज़ चैनल न्यूज़ के नाम पर कभी धर्म का प्रचार तो कभी समाज में सिर्फ नफरत फैलाने का काम कर रहें हैं। ज़रा सोचिए उस देश की हालात जब मीडिया ही सरकार की चाटुकार बन जाए , सामाजिक जरूरी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश में खुद के अनेकों रूप बदलने लगे। ये बेहद खतरनाक स्थिति है, क्युकी ऐसी स्थिति में गलत को सही समझने कि भूल किसे से भी ही सकती है अगर इंसान खुद जागरूक ना हो। फिलहाल इस शो के दस एपिसोड्स में से 4 एपिसोड के ऑन एयर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बाकी के बचे एपिसोड्स के प्रसारण पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कहा है कि किसी विशेष समुदाय को इस तरह टारगेट करना सरासर गलत है। कोर्ट में केंद्र कि तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने ये बयान दिया कि मीडिया सुप्रीम है , संविधान और पार्लियामेंट के सुप्रीम होने की बात तो ठीक है पर मीडिया को सुप्रीम कहने के बात को मैं नहीं बड़े बड़े विशेषज्ञ भी शायद समझना चाहते हैं। सोलिस्टर जेनरल , जो हमारे देश का सेकेंड लॉ ऑफिसर का पद है ,इस पद से बोलने वाले किसी इंसान के तर्क पर सवाल खड़े करना बहुत बड़ी बात हो जाति है पर ज्यादातर मीडिया जब से सरकार के गोद में आ बैठी है ,तब से ही कुछ लोग न्यूज़ को लेे कर आत्मनिर्भर बन बैठे हैं। पैसा जब ईमान से भी बड़ा बन जाए तब समझ लेना चाहिए पतन बहुत नजदीक है । आप इस पक्ती की तुलना अब के मौजूदा हालात से आसानी से कर पाएंगे। हर जगह पर गोदी मीडिया की लोगों के द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। लोग ऐसे चैनलों के खिलाफ अब बोलने लगे हैं ,जो अपनी सिर्फ टीआरपी बटोरने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। चुकी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है ,इसे छीना नहीं जा सकता और ये बात भी उतनी ही सही है कि ज्यादातर लोग बिना तथ्यों के जांच के न्यूज़ चैनलों के द्वारा परोसे गए न्यूज़ से खुद को बहुत प्रभावित कर लेते हैं और कहीं ना कहीं किसी समुदाय के प्रति अपनी राय भी बना लेते हैं जो बेशक बहुत गलत है। इन सारे तमाम मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन की बात की है। हमारे देश में आज भी कुछ न्यूज़ चैनल हैं , जो बिना डरे अपना काम बड़े ही निष्पक्षता के साथ कर रहे हैं। मैं \"द वायर\" के जर्नलिस्ट करण थापर से बेहद प्रभावित हूं। ये निष्पक्षता के जीते जागते एक मिशाल हैं।



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