
कपड़े पूरे पहन रखे थे ,जी वही भारतीय परिधान सलवार कुर्ता और हां साथ में दुप्पटा भी लिया था उसने। समाज के बनाए गए नियमों को भी ताक पर नहीं रखा था उसने , क्युकिं इसकी आजादी तो कुछ ख़ास क़िस्म के लड़कों को है। उसके कपड़े और समाज के नियमों के बारे में बताना इसलिए ज़रूरी था ताकी कुछ ख़ास विद्वान ये ना कहने लगें कि उसके छोटे कपड़े और उसकी आजादी ही उसके रेप के जिम्मेवार हैं। महज़ उन्नीस साल की मनीषा जो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की रहने वाली थी ,14 सितंबर को उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तथा 29 सितंबर को दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मृत्यु हो हुई। बताया जा रहा है कि वो सुबह के वक्त खेतों में काम करने जा रही थी पर वहां पहले से ही चार लड़के घात लगाए बैठे थे। इस घटना पर भारी भरकम शब्दों का प्रयोग मेरे बस में नहीं। कुछ गिने चुने शब्द जो आपको ट्विटर पर या किसी भी सोशल मीडिया साइट पर आसानी से मिल जाएंगे , जो बाहर से बेशक बहुत भारी पर अंदर से इतने ही खोखले हैं। दर्द को शब्दों में पिरोना इतना आसान होता तो यक़ीन मानिए एक ही दर्द एक ही जगह पर बार बार वार ना कर पता। अगर नेशनल क्राइम ब्योरो रिपोर्ट की मानें तो उत्तर प्रदेश में हर दूसरे घंटे यूपी पुलिस के पास रेप कि केस फाइल होती है और हर नब्बे मिनट में किसी बच्चे के खिलाफ किसी ना किसी तरह की क्राइम की घटना सामने आती है। कुछ मामले ही हम तक पहुंच पाते हैं , ज्यादातर मामले लोगों तक पहुंच के पहले ही दम घोंट देती हैं। घटना के तुरंत बाद भी प्रशासन अपने पैसिव मोड से एक्टिव मोड में नहीं आ पाती। पुलिस स्टेशन में भी ऐसे ऐसे सवाल किए जाते हैं मानो जिसके साथ रेप हुआ है वहीं मुजरिम हो। इस घटना को लेे कर लोग अलग अलग बयानबाजी कर रहे हैं। ये तो आपको भी पता है ये बस कुछ दिनों की बात है , फिर कोई नया मुद्दा होगा। कुछ लोगों की मांग है कि जिस तरह हैदराबाद के आरोपियों को मारा गया वैसे ही इन्हें भी शूट कर दो, कुछ की मांग है फांसी दे दो तो कुछ ये चाहते हैं कि आम जनता के बीच ला कर उन्हें मार दिया जाए पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ इन चार अपराधियों को मार देने से लड़कियां हमेशा के लिए सुरक्षित हो जायेंगी, क्या भविष्य में अब कभी भी हमारे देश में ऐसी कोई घटना सुनने को नहीं मिलेगी।ज्यूडिशियरी और लॉ एंड ऑर्डर को ताक पर रख कर पुलिस के खुद की गलतियों को छुपाने के लिए हैदराबाद में एनकाउंटर किया गया तो क्या उस एनकाउंटर के बाद कोई मामला नहीं आया? जब पुलिस ही सारी प्रक्रिया कर लेगी तो देश की न्यायिक व्यवस्था का क्या काम? ऐसी स्थिति में पॉलिटिकल पार्टीज के द्वारा शक्ति का दुरुपयोग भी किया जा सकता है। हो सकता है कि किसी शक्तिशाली व्यक्ति को बचाने के लिए किसी निर्दोष कि जान ले ली जाए। मैं तो चाहती हूं ऐसे अपराधियों को इतनी कठोर सजा मिले की कोई दूसरा ऐसी बात सोचने से भी डरे। सरकार शायद इस समस्या को खत्म ही नहीं करना चाहती है तभी तो पुलिस डिपार्टमेंट के ज्यादातर लोग निश्चिंत हो कर सो रहे होते हैं और अपराधी ऐसी घटनाओं को अंज़ाम दे आसानी से निकल जाते हैं। हम ये सवाल क्यों नहीं करते की हमारे देश की न्यायिक प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। दिसंबर 2012 के निर्भया केस के अपराधियों को सजा मिलने में भी लगभग 8 साल लग गए। न्यायिक व्यवस्था अगर दुरुस्त हो जाए तो समस्याएं बहुत हद तक कम हो जाएंगी। हम हर बार टेंपररी सॉल्यूशंस को ही क्यों ढूंढ़ते है , समस्याओं को जड़ से ख़त्म करने की बात क्यों नहीं करते। बात ये भी है कि अगर समस्याएं ख़त्म हो गई तब तो राम राज आ जाएगा पर इन्हें तो सिर्फ राम के नाम पर राज करना है , इन्हें समस्याओं से क्या? लगातार केसों की वृद्धि को देखते हुए 2000 में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना पोक्सो अधिनियम के अन्तर्गत की गई, ताकि लंबित मामलों का जल्द से जल्द निपटारा हो सके। 2019 के अंत तक हमारे देश में 581 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट कार्यरत थे, जिसमें अब भी 5.9 लाख मामले लंबित हैं। अपने देश में हो रहे ऐसे क्राइम को कम किया जा सकता है बस जरूरत है थोड़े से बदलाव कि। ये कैसा नया भारत है जहां लड़कियां आज भी खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रहीं हैं या हम यूं समझे की इस नए भारत में लड़कियों कि बात ही नहीं की गई। सरकार , प्रशासन ,न्यायालय इन सब से उठ कर हर इंसान को कोशिश करना होगा कि वो घर में या स्कूल में ही लड़के और लड़कियों के बीच के खाई को कम करने की कोशिश करें। बड़ी बड़ी बातें सोशल मीडिया पर कर देने से समस्याएं वैसी की वैसी ही रहेंगी अगर इसे हम जमीनी स्तर पर उतारने की कोशिश ना करें। मैं बस यही चाहती हूं कि दोषियों को जल्द से जल्द और कठोर से कठोर सजा मिले। किसी की जिंदगी के बदले कितनी भी कठोर सजा बहुत कम है, पर सजा ऐसी जरूर हो की ऐसी मानसिकता वाले लोग अपनी मानसिकता बदल लें। गलती बस इतनी है की मैं एक लड़की हूं , पर गलती मरी तो नहीं ये अच्छा होता मां ,मेरे लिए ,जो तू मुझे अपने गर्भ में ही मार दी होती
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