
मेदिनीनगर: संस्कृतिक पाठशाला की 66वीं कड़ी में "वैज्ञानिक चेतना के विस्तार की चुनौतियां और उनके समाधान" विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला की अध्यक्षता इप्टा के जिला अध्यक्ष सुरेश सिंह और संस्कृतिकर्मी ललन प्रजापति ने संयुक्त रूप से की।
कार्यशाला की भूमिका रखते हुए प्रेम प्रकाश ने कहा कि वैज्ञानिक चेतना के विस्तार में आने वाली चुनौतियों को पहचानना और उनसे निपटने की रणनीति बनाना आवश्यक है। बिना वैज्ञानिक चेतना के, कोई भी विकास नीति सतत और प्रभावी नहीं हो सकती। किसी भी चुनौती का समाधान तभी संभव है जब हम पहले उसके स्वरूप को सही तरीके से समझें।
कार्यशाला के दौरान शिक्षक गोविंद प्रसाद ने कहा कि वैज्ञानिक चेतना के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा सत्ता की नीतियां, मीडिया और सोशल मीडिया बन रही हैं। वहीं, फिजियोथैरेपिस्ट कुलदीप राम ने भाषा और बाजारवाद को एक प्रमुख चुनौती के रूप में रेखांकित किया। रवि शंकर ने अंधविश्वास और रूढ़िवाद को वैज्ञानिक सोच के प्रसार में बड़ी अड़चन बताया। नई संस्कृति सोसाइटी के अजीत पाठक ने कहा कि वैज्ञानिक चेतना के प्रसार से पारंपरिक रीति-रिवाजों पर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे कई लोग असहज महसूस कर रहे हैं।
वक्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। प्रेम प्रकाश ने कहा कि वैज्ञानिक सोच का विकास होने के बावजूद पारंपरिक मान्यताओं से जुड़े भय और सामाजिक दबाव लोगों को बदलने से रोकते हैं। इसके अलावा, स्थानीय भाषाओं में वैज्ञानिक चेतना से जुड़ी कहानियों और विचारों का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है। गरीबी और अशिक्षा भी वैज्ञानिक सोच के प्रसार में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।
रवि शंकर ने संस्कृतिक पाठशाला को वैज्ञानिक चेतना के विस्तार का प्रभावी माध्यम बताया और इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि सोशल मीडिया का इस्तेमाल अवैज्ञानिकता फैलाने के लिए किया जा सकता है, तो इसे वैज्ञानिक चेतना के विस्तार के लिए भी प्रभावी रूप से प्रयोग किया जा सकता है।
अध्यक्षीय संबोधन में ललन प्रजापति ने कहा कि बिना तर्क के वैज्ञानिक सोच का निषेध करना एक गंभीर चुनौती है। तार्किकता को महत्वहीन समझना भी एक समस्या है, जिससे नई पीढ़ी भ्रमित होती है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब बच्चे विज्ञान में सूर्य और चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक कारण पढ़ते हैं, लेकिन सामाजिक रूप से उन्हें अंधविश्वास और कर्मकांडों में फंसाया जाता है, तो उनकी वैज्ञानिक चेतना बाधित होती है।
उन्होंने यह भी कहा कि राफेल लड़ाकू विमान को शक्तिशाली कहकर खरीदना और फिर उसका उद्घाटन नारियल फोड़कर करना वैज्ञानिक चेतना का विरोधाभास है।
अंत में, कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे सुरेश सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक चेतना के विस्तार में कई बाधाएं हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चुनौती खुद को बदलना है। हम वैज्ञानिक सोच की वकालत तो करते हैं, लेकिन अक्सर सामाजिक दबावों के सामने झुक जाते हैं।
इस कार्यशाला में अमित कुमार, भोला, अजीत ठाकुर, संजीव कुमार संजू सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे।
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