
मेदिनीनगर : संस्कृतिक पाठशाला की 64 वीं कड़ी में इप्टा, ज्ञान विज्ञान समिति एवं भाभा साइंस स्टडी सेंटर के संयुक्त तत्वाधान में इप्टा के महत्वपूर्ण स्तंभ सह स्वतंत्रता सेनानी लोकप्रिय अभिनेता ए के हंगल को समर्पित परिचर्चा का आयोजन किया। परिचर्चा का विषय था विज्ञान और हमारे वैज्ञानिक चेतना।
उक्त परिचर्चा प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष पंकज श्रीवास्तव, इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेश सिंह एवं ज्ञान विज्ञान समिति के प्रांतीय शिव शंकर प्रसाद की संयुक्त अध्यक्षता में प्रारंभ हुई।
परिचर्चा का विषय प्रवेश कराते हुए प्रेम प्रकाश ने ए के हंगल की संघर्ष में जिंदगी की चर्चा करते हुए कहा कि ए के हंगल अपने अभिनय में भी वैज्ञानिकता का भरपूर उपयोग करते थे। उन्होंने एक मुलाकात में चर्चा के दौरान बताया था कि शोले फिल्म में अंधे इमाम साहब की भूमिका अदा करने के लिए मैंने वानर से नर बनने की प्रक्रिया को समझने के लिए एंग्लस द्वारा लिखित पुस्तक का अध्ययन किया था। आज की परिचर्चा वैज्ञानिक चेतना के विस्तार में अपनी कला को समर्पित करने वाले ए के हंगल को समर्पित है। आज इस विज्ञान के युग में विज्ञान का उपयोग तो करते हैं परंतु अपनी चेतना को हम विकसित नहीं करते। आज भी अंधविश्वास की घटनाएं सामने आती रहती है।
सभी वक्ताओं ने ए के हंगल के प्रति नमन करते हुए और उनके जीवन के संघर्ष की चर्चा करते परिचर्चा में हुए अपने विचारों को प्रस्तुत किया।
परिचर्चा के मुख्य वक्ता केडी सिंह ने कहा कि
विज्ञान ने हमारी चेतना को विकसित किया है। परंतु उसे चेतना को स्थापित होने से पहले कुंद करने की भी प्रक्रिया जारी है। पहले के लोग सांप काट देने पर झाड़ फूंक कराते थे। परंतु आज डॉक्टर के पास जाते हैं। यह हमारी वैज्ञानिक चेतना का परिणाम है।
लेकिन ब्राह्मणवाद जब कहता है मेरे वर्चस्व को स्वीकार करो और मुझे प्रणाम करो। तो मैं पूछता हूं कि आपको ही प्रणाम क्यों करें। यहां ब्राह्मणवाद का मतलब ब्राह्मण जाति से नहीं है। वैज्ञानिक चेतना सवाल करने की ताकत देता है। सबको समुचित इलाज, भोजन, पानी, और हवा से संबंधित सवाल पूछना वैज्ञानिक चेतना का परिणाम है। इतिहास साक्षी है सत्ता वैज्ञानिक चेतना को खत्म करने का प्रयास करती रही है।
इप्टा के अध्यक्ष प्रेम भसीन ने कहा कि ज्ञान और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। धार्मिक होना खराब नहीं लेकिन धर्मांध होना खतरनाक है। अंधविश्वास से दूर रहना हमारे वैज्ञानिक चेतना को प्रतिबिंबित करता है।
ज्ञान विज्ञान समिति के चंदन ने कहा जब हम ज्ञान को तार्किकता की कसौटी पर कसते हैं तो वह हमारे वैज्ञानिक चेतना होती है। आज हम बहुत सारी चीजों को जानते हुए भी लकीर के फकीर बने रहते हैं। आज भी हम कहते हैं सूरज उगता है और सूरज डूबता है। और यही बात पढ़ाई भी जाती है। वैज्ञानिक चेतना का विस्तार करना है तो स्कूली शिक्षा प्रणाली को सुधारना होगा। रंजय जी ने कहा विज्ञान सब्जेक्ट और ऑब्जेक्ट के बीच का रिलेशन है। द्रष्टा और दृश्य में अंतर होना आवश्यक है। द्रष्टा को पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए, तभी वैज्ञानिक चेतना के साथ दृश्य का विश्लेषण कर सकते हैं।
साहित्यकर्मी अरविंद ने कहा जिस काम को जिसे करना चाहिए वह नहीं कर रहा है। आज अंधविश्वास कौन फैला रहा है। अगर देखा जाए तो अंधविश्वास फैलाने का काम मीडिया कर रहा है। यह सोचने की जरूरत है। आज जरूरी है विज्ञान की बातों को बच्चों तक पहुंचाना। कुलदीप जी ने कहा ए के हंगल की जीवन शैली से वैज्ञानिक चेतना परिलक्षित होती है। उनसे जब एक व्यक्ति ने पूछा कि पहले विज्ञान या फिर अनुभव। तब उन्होंने जवाब दिया अनुभव के आधार पर किताब लिख गया और विज्ञान का विकास हुआ। उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद को स्वीकार किया और अपनी कलात्मक को पूरी प्रतिबद्धता के साथ वैज्ञानिक चेतना के विस्तार में लगा दिया। सुशील कुमार ने कहा विज्ञान हमारे समाज का आईना है। विज्ञान के आधार पर हम अपने कोई काम को करें तो विकास हो सकता है। पीयूसीएल के निषाद खान ने उदाहरण के तौर पर सुधांशु त्रिवेदी की बातों को रखते हुए कहा कि उन्होंने बताया कि पंचांग में पृथ्वी को ग्रह नहीं माना गया है। जबकि वैज्ञानिकों ने अध्ययन के बाद पृथ्वी को ग्रह के रूप में बताया है। जिसे बहुत ही आसानी तरीके से खंडित किया जा रहा है। इस बात का इतिहास रहा है जिन्होंने पुरानी बातों को या धर्म से जुड़ी बातों को खंडित किया है उन विद्वानों को धर्म पोषित सत्ता ने उन्हें दंडित करने का काम किया। उनमें गैलीलियो, सुकरात और यहां तक के नालंदा विश्वविद्यालय को मटियामेट करने का भी काम किया है। हम जब दर्शनशास्त्र का अध्ययन करते हैं तो डार्क युग का अध्ययन करते हैं। डार्क योग उसे युग को कहते हैं जिसमें ज्ञान और विज्ञान को समाप्त करने की प्रक्रिया चलाई गई थी। विज्ञान राजनीति को प्रभावित करती है। घनश्याम ने कहा कि हम 21वीं सादी में जी रहे हैं। भारत का सर्वांगीण विकास विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना पर ही निर्भर करती है।
अध्यक्ष मंडल के सुरेश सिंह ने कहा कि जब हम वैज्ञानिक चेतना की बात करते हैं तो धर्म को धर्म के रूप में लेना चाहिए। धर्म में कहा गया है कि दूसरों की भलाई से बड़ा धर्म कोई नहीं हो सकता।
अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए पंकज श्रीवास्तव ने कहा कि एके हंगल की पहचान एक अभिनेता के रूप में है। उन्होंने सिनेमा में 50 वर्ष की उम्र में अभिनय करना शुरू किया था। इसके पहले नाटक में अभिनय लगातार करते रहे। और कलाकारों को एकजुट किया। इप्टा के साथ जुड़ गए और लगातार अभिनय करते रहे। इसलिए उनकी पहचान नाट्य अभिनेता के रूप में रही है। इससे बड़ा योगदान उन्होंने आजादी की लड़ाई में रही है। जब जलियांवाला बाग का कांड हुआ था तो अंग्रेजों के खिलाफ एक आक्रोश भड़का था उसमें अंग्रेजों पर पत्थर मारने वालों में हंगल साहब भी थे। साथ ही साथ भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी का जो फैसला हुआ था तो मर्सी पिटिशन पर हस्ताक्षर करने वालों में हंगल साहब का नाम भी था। जब पाकिस्तान में दिलीप साहब को आमंत्रित किया गया तो उन्होंने कहा दिलीप साहब को पाकिस्तान जाना चाहिए। इस पर बाल ठाकरे ने सभी निर्देशकों को यह कह दिया था कि फिल्मों में अगर एक के हंगल अभिनय करेंगे तो उनकी फिल्म नहीं चलेगी। निर्देशकों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया था। उसके बाद भी हंगल साहब अपने निर्णय पर अडिग रहे। यह उनके वैज्ञानिक समझ को प्रतिबिंबित करता है। आज की परिचर्चा उनके संघर्ष और वैज्ञानिक चेतना को समर्पित थी।
परिचर्चा का संचालन अध्यक्ष मंडल के शिव शंकर प्रसाद और रवि शंकर ने धन्यवाद प्रेषित किया। मौके पर शीला श्रीवास्तव, आशा शर्मा, संजीव कुमार संजू, राकेश कुमार देश दीपक, सलमान , नुदरत नवाज, अजीत कुमार सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
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